रजब का चाँद देख कर आप (सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लम) का अमल
इस पूरे महीने के बारे में जो बात सहीह सनद के साथ हुज़ूर अक़दस (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से साबित है, वह यह है कि जब आप रजब का चाँद देखते थे तो चाँद को देख कर आप यह दुआ फरमाया करते थे कि : (अल्लाहुम् म बारिक्लना फ़ी रः जः बि व शअबानः व बल्लग्ना रमज़ान) ए अल्लाह हमारे लिए रजब और शाबान के महीने में बरकत अता फरमाए, और हमें रमज़ान तक पहुंचा दीजये,,-यानी हमारी उम्र इतनी कर दीजये कि हम अपनी ज़िन्दगी में रमज़ान को पालें, गोया कि पहले से रमज़ानु अल मुबारक का आने का शौक़ होता था- यह दुआ आप से सही सनद के साथ साबित है, इस लिए यह दुआ करना सुन्नत है, और अगर किसी ने शुरू रजब में यह दुआ न की हो तो वह अब यह दुआ करले- इस के इलावा और चीज़ें जो आम लोगों में मशहूर हो गई हैं, उन की शरीयत में कोई असल और बुन्याद नहीं-
शब् ए मेराज की फ़ज़ीलत साबित नहीं
27 रजब की शब् (रात) के बारे में यह मशूर हो गया है कि यह शब् ए मेराज है, और इस शब् को भी इसी तरह गुज़ारना चाहये जिस तरह शब् ए क़दर गुज़ारी जाती है, और जो फ़ज़ीलत शब् क़दर की है, कमो बेश शब् ए मेराज की भी वही फ़ज़ीलत समझी जाती है, बल्कि एक जगह यह लिखा हुआ देखा की ,,शब् मेराज की फ़ज़ीलत शब् ए क़दर से भी ज़्यादा है,, और फिर इस रात में लोगों ने नमाज़ों के भी ख्वास ख्वास तरीके मशहूर कर दिए कि इस रात में इतनी रिकआत पढ़ी जाएं और हर रिकअत में फलां फलां ख्वास सूरतें पढ़ी जाएँ- नामालूम किया किया तफ़सीलात इस नमाज़ के बारे में लोगों में मशहूर हो गईं- खूब समझ लीजये यह सब बे असल बातें हैं, शरियत में इन की कोई असल और कोई बुन्याद नहीं- और बहुत सी बातें बे बुनियाद हैं जो आगे आर्टिकल (मजमून) में लिखी जाएगी फिलहाल के लिए इतना ही
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