ग़ैबी निदा
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एक मर्तबा का ज़िक्र है की एक शख्स तिजारत के गरज़ से घर से चला रास्ते के बेशुमार सऊबतें बर्दाश्त करते करते वो एक जंगल से गुज़रा तो उस को एक अपाहिज लोमड़ी ज़मीन पर पड़ी दिखाई दी वो लोमड़ी हाँथ और पांव से बिल्कुल अपाहिज थी और चल फिर न सकती थी लेकिन जसामत से काफी फ़र्बा दिखाई देती थी- उस शख्स के दिल में ख्याल गुज़रा कि यह लोमड़ी तो बिल्कुल चल फिर नही सकती- आखिर यह खाती कहाँ से है? वह शख्स अभी सोच ही रहा था कि अचानक उसे एक तरफ से शेर आता दिखाई दिया तो खोफ ज़दह हो कर एक क़रीबी दरख्त (पेड़) पर चढ़ गया-
अब उस शख्स ने दरख्त पर चढ़ कर नीचे देखना शुरू किया देखता है- कि शेर जिस जानवर का शिकार कर के लाया है उस को लोमड़ी के नज़दीक ही बैठ कर कहना शुरू किया और जब उस ने खूब पेट भर खा पी लिया तो बचा खुचा गोश्त (माँस) वहीं छोड़ कर जंगल की एक सिम्त को रवाना हो गया- शेर के जाने के बाद लोमड़ी अपने जिस्म को खिस्काती हुई घिसटते हुए इस बचे खुचे गोश्त की तरफ बढ़ी और उस को कहना शुरू कर दिया- उस शख्स ने जब यह सूरत ए हाल देखी तो सोचने लगा जब अल्लाह तआला इस मॅज़ूर (अपाहिज) लोमड़ी को बैठे बिठाए रिज़्क़ (रोज़ी रोटी) दे सकता है तो तो फिर मुझे घर से निकल कर रिज़्क़ के लिए दर बदर फिरने की किया ज़रुरत है- मैं भी आराम से अपने घर बैठता हूँ अल्लाह तआला खुद ही मेरी रोज़ी का कोई न कोई सामान पैदा कर देगा-
यह सोच कर वह शख्स दरख़्त से नीचे उतरा और सीधा अपने घर की तरफ वापस रवाना हो गया और घर जा कर डेरा लगा लिया कोई काम काज न करता था और इस भरोसे पर बैठा हुआ था कि ग़ैब (अल्लाह के तरफ) से रोज़ी का कोई सामान पैदा हो जाएगा इस तरह बैठे बैठे इसे कई दिन गुज़र गए मगर किसी तरफ से कुछ न आया तो घबराया और कहने लगा, ए अल्लाह! इस मॅज़ूर लोमड़ी को तो बैठे बिठाए रिज़्क़ देता है और मुझे आज कितने दिन हो गए हैं तूने मेरी तरफ कुछ भी नहीं भेजा आखिर वह किया है? ग़ैब से निदा आई, (अल्लाह के तरफ से आवाज़ आई) ए बेवक़ूफ़! हम ने तुझे दो चीज़ें दिखाई थीं एक मॅज़ूर लोमड़ी थी जो दूसरों के बचे खुचे खाने पर धियान रखती थी और एक शेर दिखाया था जो खुद अपनी हिम्मत और मेहनत से शिकार कर के लाता और खुद भी खाता और दूसरे माज़ूरों और मुहताजों को भी खिलाता- ए नादान! तूने इस से यह सबक़ हासिल किया कि खूद मॅज़ूर लोमड़ी की तरह बन कर बैठ गया जबकि तुझे हम ने अच्छे भले हाँथ पाओं दिए और तू इस शेर की तरह न बना जो मेहनत कर के खूद भी खाता है और दूसरों को भी खिलाता है- उठो शेर बनो और अपनी रोज़ी रोटी खुद कमा कर खाओ मेहनत करो और हिम्मत से काम लो इस लिए कि मेहनत ही में इज़्ज़त है खुद भी खाओ और मोहताजों को भी खिलाओ-
उस शख्स ने जब इस ग़ैबी निदा को सुना तो दिल में बड़ा शर्मिन्दा हुआ और फिर तिजारत (कारोबार) के लिए चल पड़ा-
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