एक दरवेश की कहानी
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Interesting article |
एक दरवेश ने अल्लाह तआला की बारगाह ए अक़दस में दुआ की कि ए अल्लाह! मुझे बेगैर मेहनत और कमाई के हलाल रिज़्क़ अता फरमा क्यों कि इस तरह में इबादत करने से रह जाता हूँ और काफ़ी वक़्त रिज़्क़ हलाल की तलाश में खत्म हो जाता है- अल्लाह तआला ने इस की दुआ क़ुबूल की उसे ख्वाब में एक पहाड़ के नज़दीक जंगल को दिखाया गया वह दरवेश जंगल में गया और उस ने दरख़्त से बहुत से फल तोड़ लिए अल्लाह तआला ने अपनी क़ुदरत से उन फलों को खूब मीठा कर दिया जब उस दरवेश ने यह फल खाए तो इस के चौदह तबक (थाल) रौशन हो गए- दरवेश इस वाक्य को खुद बयान करते हुए कहते हैं कि इस बे मेहनत के फल खाने से मेरे कलाम (बात) में वह शीरीनी और मिठास पैदा हो गई कि मेरी गुफ्तगू सुन कर लोग हैरान हो जाया करते- इस के बाद मैं ने अल्लाह तआला से दुआ की ए अल्लाह ए परवर्दीगार! मुझे वह इनाम अता फरमा जो सब से पोशीदा (छुपा) हो- अल्लाह तआला ने मेरी इस दुआ को क़ुबूल किया और मेरी क़ुव्वत गोई (बोलने की ताक़त) जाती रही मेरे दिल को इत्मीनान हासिल हो गया क्योंकि मेरी बातों को सुनने के लिए पहले हर वक़्त एक जम्म गाफीर (बहुत भीड़) हाज़िर रहता था अब कोईभी मेरे पास न आता था और इबादत में मुझे लुत्फ़ (मज़ा) आने लगा था- मेरी दिली कैफ़ियत इस क़दर पुर मुसर्रत थी कि जन्नत में सिर्फ वही हासिल हो जाए तो मज़ीद किसी चीज़ की तमन्ना की ज़रुरत नहीं है-
चूँकि मैं रोज़ी कमाने की फ़िक्र से आज़ाद हो चूका था मुझे इस मामले में मेहनत व मुशक़्क़त की कोई ज़रुरत नहीं थी- जिन दिनों में कमाई के लिए मेहनत किया करता था इन दिनों का बचा हुआ एक दिरहम मेरे पास मौजूद था जिस को मैंने अपनी आस्तीन में सी रखा था- एक मर्तबा का ज़िक्र कि मैं जंगल में बैठा हुआ था- मैं ने एक दरवेश को देखा जो जंगल से लकड़िया काट कर बोझ उठाए थका हार चला आ रहा था मेरे दिल में ख्याल आया कि मैं तो अब रोज़ी कमाने की फ़िक्र से आज़ाद हो चूका हूँ दरख्तों पर लगे हुए कड़वे फल भी मेरे लिए शीरीं ज़ाएका वाले बन गए हैं मेरे पास जो एक दिरहम मौजूद है मुझे इस की क्या ज़रुरत है? मुझे तो अल्लाह तआला रिज़्क़ दे ही देता है- अगर मैं उस लकड़हारे को यह एक दिरहम दे दूं तो लकड़हारा दो तीन के लिए अपनी खोराक के गम से आज़ाद हो जाएगा और मेरे इस एक दिरहम से दो तीन दिन अपना काम चला लेगा-
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