अल्लाह मेरा मुहाफ़िज़ है
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एक मर्तबा का ज़िक्र है कि एक यहूदी हज़रत अली (रज़ियल्लाहु तआला अन्ह) की खिदमत में हाज़िर हुआ और कहने लगा, ए अली! अगर आप को इस बात पर यक़ीन है कि अल्लाह तआला आप की हिफाज़त करता हैतो आप किसी बुलंद (ऊंची) या ऊंचे मकान की छत से अपने आप को गिरा कर देखें ताके मुझे भी यक़ीन हो जाए कि आप को अपने एतेक़ाद (विश्वास) पर भरोसा है- हज़रत अली (रज़ियल्लाहु तआला अन्ह) ने फरमाया, बे शक मुझे यक़ीन है कि अल्लाह तआला मेरा मुहाफ़िज़ हैलेकिन बंदे को यह हक़ नही कि वो अल्लाह ताला की इम्तिहान के ज़रिए आज़माइश करे यह बात तो अल्लाह तआला की बारगाह में गुस्ताखी है जिस का नतीजा तबाही के सिवा कुछ नहीं निकलता आज़माने का हक़ तो अल्लाह ताला को है कि वो अपने बंदों को आज़माए- में तो बेगैर दलील के इस बात पर यक़ीन रखता हूँ कि अल्लाह तआला मेरी हिफाज़त फरमाता है-
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यहूदी ने हज़रत अली (रज़ियल्लाहु तआला अन्ह) की बातें सुनीं तो ख़ामुशी से अपनी राह हो लिया- इस हिकायत से यह नतीजा निकलता है कि इंसान को अल्लाह तआला की ज़ात ए अक़दस पर कामिल ए ईमान और यक़ीन होना चाहये कि ज़िन्दगी और और मौत अल्लाह तआला के इख्तियार में है और जान बूझ कर मौत के मुँह में छलांग लगा देना अक्लमंदी की बात नहीं-
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