गुमशुदा ऊँट
हज़रत इब्राहीम इब्न अदहम (रहमतुल्लाहि अलैह) सल्तनत (राज्य) के बादशाह थे एक रात का ज़िक्र है कि आप अपने महल में सो रहे थे आधी रात के वक़्त छत पर खटका हुआ और शोर व गुल सा मचा आप की आँख खुल गई कान लगा कर सुना तो यूं महसूस हो रहा था जैसे छत पर भारी भारी क़दमों से कोई चल रहा है- हज़रत इब्राहीम इब्न अदहम (रहमतुल्लाहि अलैह) ने दिल में ख्याल किया कि यह किस की जुरअत (हिम्मत) है जो आधी रात के वक़्त महल के छत पर चल रहा है पता नहीं कोन हिम्मत वाला है- यक़ीनन (सच) यह कोई इंसान नहीं कोई भूत है आप ने महल की खिड़की खोली और अपनी गर्दन बहार निकाल कर छत की तरफ मुंह करते हुए ऊंची आवाज़ से पुकारा, कौन है? अजीब व गरीब किस्म के लोगों ने सर नीचे कर के जवाब दिया हम रात के वक़्त किसी की तलाश में फिर रहे हैं- हज़रत इब्राहीम इब्न अदहम (रहमतुल्लाहि अलैह) ने हैरान हो कर पुछा, क्या तलाश कर रहे हो? वह कहने लगे, हम ऊँट को तलाश कर रहे हैं- हज़रत इब्राहीम इब्न अदहम (रहमतुल्लाहि अलैह) बोले, कभी किसी ने गुमशुदा ऊँट को छत पर तलाश किया है- यह सुन कर बर्जस्ता कहने लगे- क्या किसी ने बादशाही के आलम में ताज व तख़्त पा कर फक़ीरी को तलाश किया है- यह सुनना था कि आप पर अजब बे खुदी की कैफियत तारी हो गई दिल पर इस बात ने असर किया और उसी वक़्त सब कुछ छोड़ छाड़ कर पहाड़ों की तरफ निकल गए- और दुनिया से छुप कर अल्लाह तआला की इबादत में मशगूल हो गए-
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