मोर के पँख
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मोर यह सुन कर कुछ न बोला- मगर उस की आँखों से खुद बखुद आंसू निकल गए- क्यों कि वह दर्द दिल का पता देते थे इस लिए सब अश्क (आंसू) रेज़ी से मुतास्सिर हुए- जब आँखों की राह वह अपनी दिल की आग निकाल चूका था तो बोला ए दाना' इंसान अब मेरी बात भी सुन ले तू मेरे खुशनुमा परों को देखता है मगर मैं अपने ऐबों को देख कर अश्कबार हूँ (रो रहा हूँ) न मेरे गोश्त में मज़ा है न मेरे पाओं में- खूबसूरत लोग मेरे पंखों की तारीफ करते हैं- और मैं अपनी ज़िश्त (भद्दा) पाई से शर्मिंदा हूँ- सिर्फ मेरे पर ही हैं जिन के लिए शिकारी मेरी तलाश में रहते हैं- और मुझे मार गिराते हैं- काश गोश्त और पैरों की तरह मेरे पर भी ख़राब हो- और मेरी नीलगों गर्दन भी बदसूरत होती ताकि मैं शिकारियों की निशाना ह् बनता- मैं अपने दुम (पूँछ) के पर नोच कर फेंख रहा हूँ- ताकि मुझे लंडूरा देख कर शिकारी मेरी जान लेने के दरपे न हों-
हुनर और इख़्तियार उन्ही को सूद मंद (लाभप्रद) है जो अल्लाह से डरने वाले हैं वरना यह हुनर और इख़्तियार उन के लिए है वैसा ही वबाल बन जाता है जिस तरह मोर के लिए पँख-
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